Mahesh Mishra

Mahesh Mishra is a Founder of Arth Enterprises. Arth Enterprises owned 30+ Website & Apps. \

Thursday, February 6, 2020

करसन भाई पटेल

कभी घर-घर जाकर साइकिल से बेचता था सामान, ऐसे खड़ी की 5500 करोड़ की कंपनी
शून्‍य से शिखर तक का सफर तय करने वाले करसनभाई पटेल आज लगभग 5,500 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं. अपने व्‍यावसायिक सफर में उन्‍होंने देसी तो छोड़ि‍ए, टॉप विदेशी कंपनियों के भी पसीने छुड़ा दिए.
आज मैं आपको एक ऐसे शख्‍स की कहानी बता रहा हूँ , जिसका बचपन गरीबी में बीता, लेकिन अपनी संकल्‍पशक्ति और बेजोड़ रणनीति के दम पर उन्‍होंने भारतीय कॉरपोरेट जगत में वह ऊंचाई हासिल की, जिसकी अधिकांश लोग बस कल्‍पना ही कर पाते हैं.
यह कहानी है- गुजरात के एक साधारण किसान परिवार में जन्‍मे करसन भाई पटेल की.

गरीबी के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा कुछ खास नहीं हो पाई. हालांकि लगन के धनी पटेल ने केमिस्‍ट्री में बीएससी करके हालात को संभालने के लिए एक लैब टेक्‍नीशियन की नौकरी कर ली. लेकिन उन्‍हें जल्‍द यह बात समझ में आ गई कि महज नौकरी से कुछ होने वाला नहीं है.
बस क्‍या था, उन्‍होंने नौकरी के साथ शुरू कर दिया अपना बिजनेस.
पटेल ने अपने घर के पिछवाड़े में डिटरजेंट बनाना शुरू किया और उस पाउडर की पैकेजिंग वे हाथ से ही करते थे. फिर ऑफिस से आने के बाद उन्‍होंने साइकिल चलाकर और घर-घर जाकर उसे बेचना शुरू किया. उस समय निरमा डिटरजेंट पाउडर की कीमत उन्‍होंने 3 रुपए प्रति किलो रखी.
जल्‍द उनका प्रोडक्‍ट हिट हो गया और उन्‍होंने इसका ब्रांड नैम अपनी बेटी के नाम पर निरमा रखा. इसके तीन साल बाद  पटेल ने अपनी नौकरी छोड़ दी. जल्‍द निरमा ब्रांड गुजरात और महाराष्‍ट्र में काफी लोकप्रिय हो गया. आज इस ब्रांड के तहत कई सारी इकाइयां काम कर रही हैं, जिनमें काम करने वालों की संख्‍या 15 हजार से भी अधिक है.
पटेल ने 1969 में वाशिंग पाउडर निरमा शुरू किया. उस वक्त कुछ गिनी-चुनी विदेशी कंपनियां ही डिटर्जेंट बना रही थीं.
इन सबके बीच निरमा की लोकप्रियता इसलिए बढ़ी, क्‍योंकि उसने हर पैकेट पर कपड़े साफ नहीं होने पर पैसे वापस करने की गारंटी देनी शुरू की.
इससे लोगों में इस पाउडर के प्रति भरोसा बढ़ गया और वे आसानी से इसे खरीदने लगे. कम कीमत के कारण भी इसके विस्‍तार में मदद मिली.
बाजार के अन्‍य प्रोडक्‍ट्स की तुलना में इसकी कीमत को उन्‍होंने सोझ-समझकर रखा. जब बाजार का सबसे सस्ता वाशिंग पाउडर 13 रुपए प्रति किलो था, तब निरमा पाउडर तीन रुपए प्रति किलो बिक रहा था.
चूंकि लोगों की चाह होती है कि उन्हें सस्ती और अच्छी चीज मिले, पटेल का फार्मूला इस चाहत में फिट बैठ गया.
फोर्ब्स ‌के अनुसार, एक साल में आठ लाख टन निरमा डिटर्जेंट बिकता है.
1995 में पटेल ने अहमदाबाद में ‘निरमा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ की स्थापना की. इसके बाद एक प्रबंधन संस्थान की भी स्थापना की गई. बाद में दोनों संस्थान ‘निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के अंतर्गत आ गए.
आपका दिन शुभ हो ---और कोई सवाल हो तो टिप्पणी करें --धन्यवाद

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Wednesday, January 29, 2020

गुरु और शिष्य

एक राजा था. उसे पढने लिखने का बहुत शौक था. एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की. शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा. राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ. गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था. राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.
राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”
गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.
गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .

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