Mahesh Mishra

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Wednesday, February 5, 2020

रतन टाटा विरुद्ध बिल फोर्ड


अपमान का सबसे अच्छा बदला सफलता हैं”।
आज मैं रतन टाटा के एसे पड़ाव के बारे में बात करने जा रहा हु , जिसमें रतन टाटा ने अपनी सफलता से अपने अपमान का बदला लिया।
शुरू करने से पहले रतन टाटा के बारे में थोड़ा जान लेते हैं
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को भारत के सूरत शहर में हुआ था। रतन टाटा नवल टाटा के बेटे हैं जिन्हे नवजबाई टाटा ने अपने पति रतनजी टाटा के मृत्यु के बाद गोद लिया था। जब रतन दस साल के थे और उनके छोटे भाई, जिमी, सात साल के तभी उनके माता-पिता (नवल और सोनू) मध्य 1940 के दशक में एक दुसरे से अलग हो गए। तत्पश्चात दोनों भाइयों का पालन-पोषण उनकी दादी नवजबाई टाटा द्वारा किया गया। रतन टाटा का एक सौतेला भाई भी है जिसका नाम नोएल टाटा है।
रतन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैंपियन स्कूल से हुई और माध्यमिक शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से। इसके बाद उन्होंने अपना बी एस वास्तुकला में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय से 1962 में पूरा किया। तत्पश्चात उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से सन 1975 में एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया।
रतन टाटा एक प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति और टाटा संस के सेवामुक्त चेयरमैन हैं। वे सन 1991 से लेकर 2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे। 28 दिसंबर 2012 को उन्होंने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ दिया परन्तु वे अभी भी टाटा समूह के चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष बने हुए हैं। वह टाटा ग्रुप के सभी प्रमुख कम्पनियों जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा टी, टाटा केमिकल्स, इंडियन होटल्स और टाटा टेलीसर्विसेज के भी अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने नई ऊंचाइयों छुआ और समूह का राजस्व भी कई गुना बढ़ा।
० टाटा समूह की कंपनिया १०० से ज्यादा देशों में हैं
० पूरे टाटा समूह में ६.५ लाख से ज्यादा लोग कार्यरत हैं ।
० टाटा कम्पनी अपने मुनाफ़े का ६६% चैरिटी में दान कर देते हैं ।
दोस्तों उम्मीद हैं कि आप रतन टाटा के विषय में कुछ जान गये होंगे, चलिए अब उस घटना के बारे में बात करते हैं जब रतन टाटा ने अपने अपमान का बदला अपने सफलता से दिया था।
बात उस समय की हैं जब टाटा कम्पनी ने १९९८ में टाटा इंडिगा कार पहली बार बाज़ार में निकाली थी , रतन टाटा का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थीं, लेकिन इंडिगा कार को मार्केट में अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला, जिसके कारण टाटा मोटर्स कुछ सालों में घाटे में जाने लगी थीं।
टाटा मोटर्स के साझेदारों ने रतन टाटा के कार व्यापार में हुए नुक़सान की पूर्ति के लिए \ कम्पनी को बेचने का सुझाव दिया। और ना चाहते हुए भी टाटा को यह काम करना पड़ रहा था।
वे अपने साझेदारों के साथ कम्पनी बेचने का प्रस्ताव फ़ोर्ड कंपनी के पास ले गये। जिसका मुख्य कार्यालय अमेरिका में हैं।
फ़ोर्ड कोंपनी के साथ टाटा की मीटिंग लगभग ३ घंटे चली, फ़ोर्ड के चेयरमैन बिल फ़ोर्ड ने रतन टाटा से बेहद बदसलूकी से व्यवहार किया, और बातों ही बातों में यह कहँ दिया कि जब तुम्हें इस बिज़नेस की जानकारी ही नहीं हैं तो तुमने इस कार को बनाने में इतना पैसा क्यूँ लगाया हम तुम्हारी कम्पनी को ख़रीद कर बस तुमपे अहसान कर रहे है।
बस यह बात रतन टाटा को दिल पे लग गई, वो रातों रात उस डील को छोड़ कर वापस आ गये , बिल फ़ोर्ड की उन बातों को रतन टाटा भुला नहीं पा रहे थे, वही बात उनको खाए जा रही थी। उसके बाद रतन टाटा ने अपनी कम्पनी किसी को ना बेचने का निश्चय किया।
उन्होंने अपनी पूरी जी जान लगा दी टाटा मोटर्स पे और देखते देखते कुछ ही समय में टाटा मोटर्स का मुनाफ़ा लय में आ गया, और वही फ़ोर्ड कंपनी नुकसान में जा रही थी। और सन २००८ तक दिवालिया होने के कगार पे थी।
उस समय रतन टाटा ने फ़ोर्ड के सामने उसकी लग्ज़री कार जगुआर, और लैंडरोवर को ख़रीदने का प्रस्ताव रखा, और बदले में फ़ोर्ड को अच्छा ख़ासा दाम देने को कहा। चूँकि बिल फोर्ड पहले ही  इन दोनो कर की वजह से घाटा झेल रहे थे, उन्होंने ये प्रस्ताव ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया। बिल फ़ोर्ड उसी तरह अपने साझेदारों के साथ टाटा के मुख्यालय पर पहुँचे जैसे रतन टाटा उनसे मिलने उनके मुख्यालय गए थे।
मीटिंग में यह तय हुआ के दोनो कार ९३ करोड़ में टाटा मोटर्स के अधीन होगा। बिल फ़ोर्ड ने फिर वही बात दोहराई जो उन्होंने पहले बोला था लेकिन इस बार बात थोड़ी पॉज़िटिव थी। बिल फ़ोर्ड ने कहा कि आप हमारी कम्पनी ख़रीद कर हम पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं। आज लैंडरोवर और जगुआर टाटा मोटर्स का हिस्सा हैं और बाज़ार में अच्छा मुनाफ़ा कमा रहीं हैं।
रतन टाटा अगर चाहते तो बिल फ़ोर्ड को करारा जवाब वही दे सकते थे, लेकिन टाटा अपने सफलता के नशे में चूर नहीं थे यहीं वो गुण हैं जो एक सफल और एक महान इंसान के बीच का अंतर दर्शाता हैं। 
जब व्यक्ति अपमानित होता हैं तो उसका परिणाम क्रोध होता हैं, लेकिन महान लोग अपने क्रोध को अपना हथियार मान कर अपने मंज़िल की ओर अग्रसर होते हैं

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