Mahesh Mishra

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Wednesday, March 4, 2020

earn with your mind not your time

Naval Ravikant

नवल रविकांत की ये लाइन बहोत कुछ कहती है।

कमाई, अपने दिमाग से कीजिये न की अपने समय से। - नवल रविकांत 

ये शब्द पढ़ते ही मुझे मेरी एक कहानी याद आयी जो आज मैं आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूंगा।

ये कहानी ४ साल पुरानी हैं।

मीना जो मुंबई की झोपड़पट्टी में अपने परिवार के साथ रहती थी। मीना सरकारी स्कुल की ८ वी क्लास में पढ़ती थी। और वो इस बात से दुखी थी की उसे ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिताने नहीं मिलता है और उसके ऊपर उसके छोटे भाई और बहन की जिम्मेदारी है।

मीना की माँ बिल्डिंग में कुछ घरों में घरकाम करती है और उसके पिताजी दूर दूसरी बिल्डिंग में चौकीदारी करते है। पिताजी शाम को ७ बजे घर से जाते और दूसरी सुबह ९ बजे घर आते और खाना खा के सो जाते शाम को फिर तैयार हो के अपने काम पर चले जाते।

और माँ भी सुबह से शाम तक दूसरों के घर के काम करने में व्यस्त रहती थी।

मीना छोटे से अपने घर में अपने भाई-बहन का ख्याल रखती और अपनी पढ़ाई करती।  एक दिन मीना ने अपनी माँ से पूछ लिया "माँ, क्या हम पूरी जिंदगी ऐसे ही जियेंगे?"

ये सवाल सुनते ही माँ ने मुस्कुराते हुए मीना को देखा और पूछा "क्यों, क्या हुआ है? सब ठीक ही तो चल रहा है। "

"नहीं, कुछ ठीक नहीं चल रहा है। मेरे सभी दोस्त हर रविवार अपने परिवार के साथ कही ना कही घूमने जाते है पर हम कभी भी कही नहीं गए। और मैं पूरा दिन घर पर अकेली ही भाई-बहन के साथ रहती हूँ। मुझे यह पसंद नहीं। "

"मीना, अगर मैं और तुम्हारे पिताजी काम पर नहीं जायेंगे तो हमारे घर का खर्च कैसे चलेगा ?" माँ ने कहा।

"माँ, क्या हम सब मिलकर कोई ऐसा काम नहीं कर सकते जिससे हमारा घर खर्च भी चले और हम सब एक साथ ज्यादा वक़्त साथ रह सके?" मीना ने माँ से पूछा।

"नहीं, क्योंकि मैं और तेरे पिताजी तो अनपढ़ है हमें कोई और काम नहीं मिलेगा और हमें दूसरा कोई काम आता भी नहीं है तो हम क्या कर सकते है। " माँ ने मीना से कहा।

"ठीक है माँ, पर मुझे लगता है हमें कुछ नया काम करना चाहिए। " मीना ने माँ से कहा।

कुछ दिनों तक मीना ने आस-पास नए काम की तलाश करती रही पर बच्ची होने की वजह से उसे कोई काम नहीं मिला।

पर एक दिन उसने एक फ़ूड स्टाल के यहाँ थोड़ा वक़्त खड़े रह कर देखा की यहाँ पर बहोत लोग खाना खाने के लिए रुक रहे है तो क्यों ना मैं और माँ भी खाना बनाने का काम शुरू करे ? मीना ने सोचा।

मीना ने पूरा किस्सा माँ को बताया, और कहा- माँ, आप अच्छा खाना बनाती हो तो क्यों न हम खाना खिलाने का ही काम करे।

पर हमारे पास पैसे कहा है ? - माँ ने कहा।

हम छोटी सुरुवात कर के काम सुरु कर सकते है। हमारे आस-पास तो बहोत लोगो को खाना चाहिए होता हैं।

पांच हजार रुपये से मीना ने अपनी माँ के साथ मिल कर खाने का बिज़नेस सुरु किया।  बहोत तकलीफो के बाद उनका बिज़नेस अच्छे से चलने लगा। और एक के बाद एक मीना ने अपने परिवार के साथ मिलकर और भी जगह पर खाने  का बिज़नेस सुरु किया।

इस तरह मीना ने अपने परिवार की किस्मत बदल दी।

कमाई, अपने दिमाग से कीजिये न की अपने समय से।

आप को अगर ये कहानी पसंद आये तो अपनों के साथ जरूर शेयर करें।

धन्यवाद।





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