Mahesh Mishra

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Monday, March 2, 2020

क्या, घर खरीदना सबसे बड़ी बेवकूफी होती हैं ?

ये सवाल अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं की- क्या, घर खरीदना सबसे बड़ी बेवकूफी हैं ??

जी हां , घर खरीदना सबसे बड़ी बेवकूफी होती हैं पर यह इस बात पर लागु होती है की आप घर कहा और कितने रुपये में खरीद रहे हो।

मैं एक उदाहरण देना चाहता हु- अगर आप मुंबई में रहते है तो आप जानते है मुंबई में खुद का घर खरीदने में आपकी पूरी जिंदगी गुजर जाती है और घर के लोन की किस्ते चुकाने के लिए घर के सभी लोगों को बहोत मेहनत करनी पड़ती हैं।

मेरे दो दोस्त है- उन दोनों के पास ४०-४० लाख रुपये थे। उन दोनों ने बहोत साल तक मुंबई में भाड़े के घर में दिन गुजारे थे।

एक यादव जी जिन्होंने अभी अभी पवई में खुद का घर ख़रीदा है मात्र १ करोड़ ८० लाख रुपये में, उन्होंने काफी कर्ज लिया और बाक़ी का बैंक से लोन ले लिया। और अब जब घर लिया तो पूजा भी की और अपने गांव के सभी रिस्तेदार लोगों को अपने खर्चें पर फ्लाइट से नए फ्लैट में पूजा में बुलाया और अपना पूरा घर और इंटेरियर दिखाया।



इन सब काम में उन्होंने २ महीने खर्च किये और २ करोड़ से ज्यादा रुपये जिसमें लगभग १ करोड़ ६० लाख का तो सिर्फ कर्ज था।  पर वो इस बात से खुश थे की उनकी पुरे रिस्तेदारों में उनका घर सबसे अच्छा है।

मेरे दूसरे दोस्त है शर्मा जी जिन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को कह के रखा था की उन्हें हैवी डिपाजिट पर घर चाहिए। और उन्हें अपने ही एक दोस्त सक्सेना जी से उनका फ्लैट जो की अँधेरी वेस्ट में स्टेशन के बाजु में ही हैं वो फ्लैट शर्मा जी ने सक्सेना जी से पुरे २० लाख रुपये हैवी डिपाजिट पर १० साल के लिए लिया।  (सक्सेना जी ने अपना फ्लैट हैवी डिपाजिट पर देने के बाद २० लाख रुपये से अपने गांव में एक बड़ा बंगला बनाया। )



और बचे हुए २० लाख रुपये में उन्होंने ४ अलग अलग बिज़नेस सुरु किये जिसमे सबसे पहला बिज़नेस था खुद का फैशन ज्वेलरी ब्रांड जिसे उन्होंने ऑनलाइन बेचना सुरु किया।

दूसरा उन्होंने एक कुरियर कंपनी की फ्रैंचाइज़ी ले ली और अपना एक और साइड बिज़नेस सुरु किया।

तीसरा उन्होंने एक आय. टी. कंपनी में पैसे इन्वेस्ट किये जो काफी अच्छी चल रही है।

चौथा उन्होंने पैसे म्यूच्यूअल फण्ड में लगाए।

इस तरह शर्मा जी ने अपने ५-५ लाख रुपये अलग-अलग बिज़नेस में लगाए।

पर दूसरी तरफ यादव जी का हाल बुरा होते जा रहा था उनका कर्ज उनके लिए बुरा वक़्त ले कर आया था और सब कर्जदार अब उन्हें परेशान करने लगे थे जिस वजह से वो बीमार पड़ने लगे और लगभग १ करोड़ ५० लाख का कर्ज अपने परिवार पर डाल कर यादव जी चल बसे।

परिवार पूरी तरह टूट गया और आखिर मैं साल भर बाद ही उन्होंने उस फ्लैट को १ करोड़ ६० लाख में बेच दिया और फिर से विरार में भाड़े के फ्लैट में शिफ्ट हो गए।

जबकि शर्मा जी अपने परिवार के साथ अब ज्यादा खुश है उनके उप्पेर कोई कर्ज नहीं है और नाही किसी प्रकार की उनकी देनदारी बची है।

हर किसी की अपनी कहानी होती हैं जरुरी नहीं सबका अंत बुरा ही हो शायद बहोत से लोगों का घर ख़रीदने का अनुभव अच्छा भी हो और उनकी जिंदगी खुशहाल भी हो।

सिर्फ सही वक़्त पर पैसों का सही इस्तेमाल करना आना चाहिए।

आप अपने अनुभव भी हमारे साथ शेयर कीजिये। 

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