Mahesh Mishra

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Thursday, February 6, 2020

वक्त बदलते वक्त नहीं लगता



हरियाणा के यमुनानगर जिले में दामला गाँव के निवासी धर्मबीर कम्बोज जो एक रिक्शाचालक थे और उन्होंने अथक परिश्रम करते हुए एक नया मुकाम हासिल किया जिन्हें देखकर कोई भी प्रेरित हो सकता…
भयंकर आर्थिक तंगी में बीते बचपन से जब धर्मबीर ने युवावस्था में कदम रखा और आटा पीसने से लेकर सरसों का तेल बेचने तक जो भी काम मिला उसे बड़ी हिम्मत से करते गये। विवाह हुआ तो कंधे पर बोझ और बढ़ गया। ऐसा लगने लगा के गाँव में रह कर दो वक्त की रोटी कमाना भी नामुमकिन है। गुज़र बसर के लिये दिल्ली जाने का कार्यक्रम बना। धर्मवीर बताते हैं के जब वह दिल्ली के लिये घर से निकले तो उनकी नवजात बिटिया केवल 3 दिनों की थी। जेब में कुल 70 रुपये थे जिसमें से 35 रुपये किराये में खर्च हो गये। कड़ाके की ठंड में दिल्ली पहुंचे और रोज़गार के लिये इधर उधर भटकना शुरू कर दिया। किसी की सलाह पर एक रिक्शा किराये पर ले लिया और दिन रात रिक्शा चलाना शुरू कर दिया।
एक दिन रिक्शा चलाते हुये किसी वाहन की चपेट में आ गये और ना चाहते हुये भी गाँव वापिस लौटने का निर्णय लेना पड़ा।
गाँव लौटे तो पैतृक ज़मीन पर खेती शुरू कर दी। पारम्परिक अनाज की खेती न करके सब्ज़ियाँ उगानी शुरू कर दी।मशरूम और स्ट्रॉबेरी की फसल लगाई तो कई गुणा मुनाफा हुआ। इसी बीच एक बार किसानों के एक समूह के साथ उन्हें राजस्थान के पुष्कर जाने का मौका मिला। सेल्फ-हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाएँ खुद गुलाबजल बना रही हैं। वहां उन्होंने महिलाओं को आंवले के लड्डू भी बनाते देखा।
उन्हें समझ में आया कि कोई भी सब्ज़ी, फल, फूल आदि की खेती में फायदा तब है जब किसान अपनी उपज को सीधे बाज़ार में बेचने की बजाय उसकी प्रोसेसिंग करके और प्रोडक्ट्स बनाकर बेचे।
बचपन में धर्मबीर पढ़ाई में तो बढ़िया नहीं थे लेकिन जुगाड़ से छोटी-मोटी मशीन बनाने का शौक रखते थे।युवावस्था में कॉम्पोनेंट्स को जोड़ कर हीटर बनाकर बेच चुके थे। मशीनरी से उन्हें प्यार था। धर्मबीर ने एक ऐसी मशीन बनाने की ठान ली जिससे एलोवेरा, आंवला, तुलसी, आम, अमरुद आदि को प्रोसेस किया जा सके।
कुल 20,000 की लागत और 8 महीने के अथक परिश्रम और इनोवेशन की बदौलत इस रिक्शा चालक ने एक प्रोसेसिंग मशीन तैयार कर दी।
मशीन में 400 लीटर का ड्रम है जिसमें 1 घंटे में 200 लीटर एलोवेरा प्रोसेस कर सकते हैं। साथ ही इसी मशीन में आप कच्चे मटेरियल को गर्म भी कर सकते हैं। इस मशीन की एक ख़ासियत यह भी है कि इसे आसानी से कहीं भी लाया-ले जाया सकता है। यह मशीन सिंगल फेज मोटर पर चलती है और इसकी गति को नियंत्रित किया जा सकता है।
धर्मबीर ने इस मशीन को अपने खेत पर रखकर फार्म फ्रेश प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। उन्होंने अपने खेत में उगने वाले एलोवेरा और अन्य कुछ सब्ज़ियों को सीधा प्रोसेस करके, उनके जैल, ज्यूस, कैंडी, जैम आदि प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू कर दिया। एक फाउंडेशन की सहायता से धर्मबीर ने मशीन का 'पेटेंट' भी हासिल कर लिया।
इसी बीच साल 2009 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उनको मशीन के आविष्कार के लिये सम्मानित किया। इसके बाद उनके बारे में जब कई अख़बारों में छपा तो उन्हें मशीन के लिए पूरे देश से ऑर्डर आने शुरू हो गए। मशीन की प्रोडक्शन बढ़ाने के लिये एक लघु उद्योग लगा लिया गया।
कहते हैं ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। मशीन की मशहूरी केवल भारत तक सीमित नहीं रही बल्कि मशीन देश के बाहर जापान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, नेपाल और नाईज़ीरिया जैसे देशों से भी ऑर्डर आने लगे।
धर्मबीर आज करोड़ों में कमा रहें हैं। कभी रिक्शा का हैंडल संभालने वाले हाथ आज गाड़ी का स्टीयरिंग संभाल रहे हैं। धर्मबीर आज भी उन दिनों को याद कर के सिहर उठते हैं जब दिल्ली की कड़कती सर्दी पर उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ता था।
परंतु आज हालात बदल चुके हैं। अपने सपनों के पीछे भागते इस रिक्शाचालक से उद्योगपति बने कर्मठ व्यक्ति ने आज एक अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड को स्थापित कर दिया है।
पूरे जुनून और पूरी शिद्दत से सपनों के पीछे दौड़ते रहना चाहिये क्योंकि 'वक्त बदलते वक्त नहीं लगता'!
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